क्या होम्योपैथी का असर धीमे होता है?
होम्योपैथिक दवाओं के असर करने का समय कई कारकों पर निर्भर करता है। अगर रोग की हाल ही में उत्पत्ति हुई है तो इलाज कम समय में ही पूरा किया जा सकता है। ऐसे में, अगर दवा का चयन, प्रभावशीलता एवं पुनरावृत्ति का समय सही हो तो होम्योपैथिक दवाएं जल्द असर करती हैं।
जीर्ण रोग के मामलों में, रोग का पूरा इलाज होने में अधिक समय लगता है। अगर दवाई का चयन सही हुआ हो तो यह रोग का शमन करने के बजाए उसे स्थायी और पूरी तरह से मिटा देता है जिसके लिए स्वाभाविक तौर पर ज्यादा समय लगता है। साथ ही, अगर रोगी द्वारा आहार और आदतों आदि को नियंत्रित करने में लापरवाही की जाती है तो उपचार की अवधि लंबे समय तक रहने की संभावना है।
क्या होम्योपैथी पहले रोग को बढ़ा देता है?
होम्योपैथिक दवाओं के सेवन के उपरांत कई बार असामान्य स्थिति में रोगी उनके रोग में तीव्रता आने की शिकायत करते हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं। प्रथमतः अगर रोगी ने होम्योपैथिक दवाओं से पूर्व गैर-होम्योपैथिक दवाओं द्वारा इलाज करवाया है तो गैर-होम्योपैथिक दवाओं के असर से संभवतः रोग का शमन हो गया हो जो होम्योपैथिक दवाओं के सेवन से दोबारा उभर आता है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर रोगी होम्योपैथी को ही दोष देते हैं। इसके अलावा, अगर रोगी के लिए ऐसी होम्योपैथिक दवाओं का चयन किया गया हो जो थोड़ी अधिक प्रभाव (आवश्यकता से अधिक) की हो या रोगी अत्यंत अनुभुत हो तो इस स्थिति में भी रोगी के मौजूदा लक्षणों की क्षणिक तीव्रता देखी जा सकती है। परंतु यह तीव्रता ज्यादा देर तक नहीं रहती।
क्या यह सच है कि होम्योपैथिक इलाज के दौरान चाय, प्याज, लहसुन आदि का सेवन करना मना होता है?
नहीं यह सच नहीं है, होम्योपैथिक इलाज के दौरान प्याज, लहसुन, चाय, कॉफी, पान इत्यादि का सेवन करना मना नहीं होता है। परंतु ऐसे खाद्य पदार्थ जो किसी विशेष दवा के प्रभाव को रोकते हैं उनसे परहेज़ करना चाहिए। जैसे कि चाय एवं कच्चा प्याज का सेवन थूजा के प्रभाव को रोकता है, कॉफी का सेवन सोरिनम के प्रभाव को रोकता है तथा कपूर का इस्तेमाल विभिन्न होम्योपैथिक दवाओं के प्रभाव को कम करता है या रोकता है। इसलिये इन खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल इलाज के दौरान मना किया जाता है जो रोग के आधार पर निर्धारित होता है।
क्या मधुमेह के रोगी ऐसी होम्योपैथिक दवाओं का सेवन कर सकते हैं जिसमें चीनी होती है?
हाँ, मधुमेह के रोगी चीनी युक्त होम्योपैथिक दवाओं का सेवन कर सकते हैं क्योंकि इन दवाओं में चीनी की मात्रा बहुत कम होती है। जरूरत अनुसार, यह दवाइयां आसुत जल के साथ भी ली जा सकती हैं।
क्या होम्योपैथिक दवाइयों की समाप्ति तिथि होती है?
होम्योपैथिक दवाइयों की कोई समाप्ति तिथि नहीं होती है। परंतु जब औषधीय गोलियों का रंग सफ़ेद रंग से बदलने लगता है तब उसे इस्तेमाल न करने की सलाह दी जाती है। अगर दवा तरल रूप में है तो उसमें रंग के बदलाव अथवा अवसादों का पता लगने पर दवा का इस्तेमाल न करने की सलाह दी जाती है। कई होम्योपैथिक दवा अल्कोहल में बनाई जाती हैं इसलिये उनकी समय के साथ तेज गंध धीमी हो जाती है जिससे कई रोगियों को यह प्रतीत होता है कि उस दावा का असर कम हो गया है परंतु ऐसा नहीं है, गंध धीमी होने के उपरांत भी वह उतनी ही प्रभावशाली रहती हैं जितनी पहले थीं। हालांकि, होम्योपैथिक दवाओं को शुष्क, ठंडी, ढ़के हुए स्थान पर सूर्य की किरणों से तथा तेज गंध वाले पदार्थों से दूर संग्रहीत करने की सलाह दी जाती है।
क्या आपातकालीन स्थिति में कोई और दवा ली जा सकती है?
अगर ऐसे रोगी के साथ आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसका होम्योपैथिक इलाज चल रहा है तो रोगी स्थिति अनुसार गैर-होम्योपैथिक दावा का सेवन कर सकता है। आपातकलीन स्थिति के उपरांत वह अपने चिकित्सक से परामर्श कर दोबारा होम्योपैथिक दावा का सेवन शुरू कर सकते है।
क्या होम्योपैथी द्वारा सभी रोगों का इलाज किया जा सकता है?
चिकित्सा की किसी भी अन्य प्रणाली की तरह, होम्योपैथी की भी अपनी सीमाएँ हैं। होम्योपैथी द्वारा विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज किया जा सकता है सिर्फ ऐसे मामलों के सिवाए जिसमें शल्य-चिकित्सा की आवश्यकता है। इसके अलावा, कुछ तथा-कथित शल्य-चिकित्सीय रोग जैसे कि बढ़े हुए टॉन्सिल, किडनी स्टोन, बवासीर, गर्भाशय के ट्यूमर इत्यादि का भी होम्योपैथी द्वारा इलाज किया जा सकता है।
क्या होम्योपैथिक दवाइयों के कोई दुष्प्रभाव हैं?
होम्योपैथिक दवाइयों का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। “दुष्प्रभाव” शब्द आधुनिक औषध विज्ञान से उत्पन्न हुआ है। होम्योपैथिक दवाइयाँ शरीर के कुछ निश्चित क्षेत्रों के लिए लक्षित नहीं होती हैं बल्कि दवाई को रोगी के लक्षणों की समग्रता के आधार पर चुना जाता है और यह रोगियों को संपूर्ण रूप से लक्षित करती हैं। इसलिये होम्योपैथिक इलाज के दुष्प्रभाव नहीं होते।
क्या होम्योपैथिक उपचार के लिए प्रयोगशाला में जांच की आवश्यकता है?
हालांकि होम्योपैथिक दवाइयाँ रोगी के लक्षणों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं, परंतु रोग के निदान के उद्देश्य से प्रयोगशाला जांच आवश्यक है तथा मामले के सामान्य प्रबंधन (जैसे कि मधुमेह कि स्थिति में चीनी के सेवन में नियंत्रण, जीवन शैली में परिवर्तन इत्यादि) आवश्यक है। कई से मामलों में प्रयोगशाला में जांच के माध्यम से ही दवाइयों का चयन किया जाता है।