होम्योपैथि के विषय में
(ग्रीक होमिओपैथिया, होमिओपेथेस से उत्पन्न शब्द है जिसका अर्थ भावनाएँ अथवा स्नेह, होमिओस का अर्थ है “समान” व पैथेस का अर्थ है “भावनाएँ” अथवा “वेदनाएँ” | व्याधियों को ठीक करने की वह पद्धति जिसमें औषधियों की बहुत थोड़ी मात्रा प्रयुक्त की जाती है और यदि औषधियों का बड़ा डोज़ दिया जाए तो वे स्वस्थ व्यक्ति को भी उसी स्थिति में कर देंगी जैसी स्थिति बीमारी के समय थी |
वेब्स्टर शब्दकोश
होम्योपैथी के प्राथमिक सिद्धान्त के अनुसार, सिमिलिया, सिमिलिबस क्यूरेंटर अथवा समानता का सिद्धान्त चिकित्सा का एक प्राकृतिक सिद्धान्त है | अर्थात दवाओं द्वारा जिन व्याधियों का इलाज किया जाता है वे स्वस्थ व्यक्तियों में उसी बीमारी के लक्षण भी पैदा कर सकती हैं, जिसे उन्होने ठीक किया है | “होम्योपैथी” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्रिश्चियन फ़्रेडरिक सैमुअल हैनिमैन ने 1807 में किया था |
उद्भव
समानता का सिद्धान्त होम्योपैथी के आधार को प्रतिपादित करता है | इसका उल्लेख हिप्पोक्रेटस तथा पैरासेलस की शिक्षाओं में भी मिलता है, परंतु इस सम्पूर्ण चिकित्साविधान की व्यवस्था को इस सिद्धान्त से निकाल कर नई दिशा देने का श्रेय जर्मन फ़िज़ीशियन क्रिश्चियन फ़्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन को जाता है |
जब 1789 में हैनीमैन, विलियम क्यूल्लेन की पुस्तक मेटेरिया मेडिका का अनुवाद कर रहे थे, जिसे स्काटिश हिप्पोक्रेटस भी कहा जाता है, वे क्यूल्लेन द्वारा दी गई व्याख्या से बहुत प्रभावित हुए कि कैसे सिंकोना बार्क रुक रुक कर आने वाले ज्वार में उपयोगी था | रुक रुक कर आने वाले ज्वार पर सिंकोना बार्क के प्रभावों को समझने के लिए, हैनीमैन ने इसे अपने ऊपर ही प्रयोग किया | सिंकोना के प्रयोग ने उतार-चढ़ाव वाले ज्वर जैसी स्थितियाँ पैदा कर दीं | उनके ऊपर हुए सिंकोना बार्क के इस प्रभाव ने मानव उत्कीर्णन के अभिनव विचार को जन्म दिया , जो आगे चल कर चिकित्साविधान का आधार बना |
हैनीमैन ने स्वयं पर और अपने निकटवर्ती लोगों पर प्रयोग करना जारी रखा, वे इस बात का संज्ञान रखते रहे कि जो भी पदार्थ उन्होने लिया उससे विरोधाभासी लक्षण उत्पन्न हुए | उन्होने यह भी पाया कि कोई भी दो पदार्थ बिलकुल एक ही तरह के लक्षण नहीं उत्पन्न करते | प्रत्येक पदार्थ अपनी अद्वितीय पद्धति से ही लक्षणों को उत्पन्न करता है, शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर । सर्व प्रथम हैनीमैन उन पदार्थों को जांचा जो उस समय में औषधि के तौर पर प्रयोग किए जाते थे (सुरमा एवं रबर्ब) साथ ही आर्सेनिक व बेल्लाडोना जैसे विष को भी | हैनीमैन द्वारा स्वयं व दूसरों पर किए गए औषधीय प्रयोग, उनके द्वारा सान 1805 के बाद लिखे लेखों में संग्रहीत है | अंततः, हैनीमैन ने होम्योपैथी के सिद्धांतों के आधार पर बीमारों की चिकित्सा प्रारम्भ की और इस क्षेत्र में प्रारम्भ से ही उत्कृष्ट नैदानिक सफलता अर्जित की
होम्योपैथी का विचार एवं सिद्धान्त
समानता का सिद्धान्त
“समानता का सिद्धान्त” एक प्राचीन चिकित्सकीय कहावत है, परंतु इसका आधुनिक रूप हैनीमैन के इस निष्कर्ष में निहित है कि किसी पदार्थ द्वारा स्वस्थ व्यक्तियों में जनित लक्षणों का समूह किसी बीमार व्यक्ति में होम्योपैथिक सिद्धांतों के अनुसार उतनी ही मात्रा दिये जाने पर उसे स्वस्थ भी कर सकता है | इस संदर्भ में प्याज़ एवं होम्योपैथिक तरीके से तैयार लाल प्याज़ ऐलियम सेपा का उदाहरण पर्याप्त है | प्याज़ छीलने पर आँखों व नाक से पानी आना एक सामान्य बात है | होम्योपैथिक सिद्धांतों के अनुसार, कोई व्यक्ति यदि आँखों व नाक में जलन व सामान्य जुकाम से ग्रसित है तो उसे लाल प्याज़ से बनी हुई ऐलियम सेपा से इलाज दिया जा सकता है |
लक्षणों की प्रोफ़ाइल जो बहुत सी दवाओं के साथ जुड़ी है, इनका निर्धारण स्वस्थ व्यक्तियों एवं स्वयंसेवकों पर करने के बाद उनके शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों के संकलन के बाद पर्यवेक्षकों द्वारा “ड्रग पिक्चर” तैयार की जाती है | इसके बाद बीमार व्यक्ति की “डिज़ीज़ पिक्चर” को मैटीरिया मैडिका में उपलब्ध ड्रग पिक्चर से मिलाया जाता है तथा सबसे उचित औषधि का चयन करके उसके उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है | इस सिद्धान्त को विश्व भर में करोड़ों होम्योपैथ चिकित्सकों द्वारा सत्यापित किया गया है |
एकल सामान्य उपचार
तत्कालीन मध्ययुगीन चिकित्सकीय परिपाटी में एक परिवर्तन लाते हुए, हैनीमैन ने अपने अनुयायियों को निर्देश दिया कि एक समय पर वे किसी भी मरीज़ का प्रबंधन एकल औषधि पद्धति से ही करें, न कि कई दवाओं के मेल से क्योंकि कई दवाओं का सम्मिलित प्रभाव एकल पदार्थ के प्रभाव से भिन्न होगा| आमतौर पर होम्योपैथिक दवाएं एकल पद्धति पर ही दी जाती हैं, जो कि दवाओं का सरल व अहानिकारक रूप है | यहाँ तक कि यदि कोई बीमार व्यक्ति कई व्याधियों से ग्रसित है, तो भी होम्योपैथिक चिकित्सक अलग अलग दवाएं नहीं देते | इसके स्थान पर वे मात्र एकल दवा पद्धति से ही इलाज करते हैं जो शरीर के अन्य महत्वपूर्ण लक्षणों में भी समान रूप से लाभकारी होती है |
कम से कम मात्रा
होम्योपैथिक दवाएं जो किसी भी बीमार व्यक्ति के लिये निर्धारित की जाती हैं, उनकी मात्रा कम से कम राखी जाती है, अतः जब उनका प्रबंधन होता है तो वे शरीर में कोई विषाक्त प्रभाव नहीं छोड़तीं |
डाइनामाईज़ेशन
होम्योपैथी सिद्धान्त की सबसे उत्कृष्ट विशेषता है “ड्रग डाइनामाईज़ेशन”। होम्योपैथिक दवाएं विशेष प्रकार से ड्रग डाइनामाईज़ेशन अथवा पोटेन्शियाईज़ेशन पद्धति से तैयार की जाती हैं| कच्ची औषधि को घोल में परिवर्तित किया जाता है ताकि उसकी गुणवत्ता में वृद्धि हो सके | इस प्रकार पदार्थ की औषधीय गुणवत्ता बनी रहती है तथा उसके वाह्य प्रभाव समाप्त हो जाते हैं | यह माना जाता है कि इस प्रक्रिया के द्वारा होम्योपैथिक दवाएं बनाने से उनमें आवश्यक शक्ति बनी रहती है जो कि एक सुरक्षित व उपचार शक्ति से परिपूर्ण होती हैं | पोटेन्शियाईज्ड दवाएं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं तथा उत्प्रेरक ग्रंथियों को और अधिक उकसाती हैं | जब इन दवाओं को यान्त्रिक प्रक्रिया से तैयार किया जाता है तो इनकी क्षमताएं भिन्न भिन्न होती हैं |
विशिष्ट शक्ति/जीवन सिद्धान्त/विशिष्ट सिद्धान्त
होम्योपैथी पद्धति जावित अंगों में छिपी अदृश्य गतिशील शक्ति की पहचान कर लेती है, जिसे, “विशिष्ट शक्ति” भी कहा जाता है , तथा शरीर के सभी क्रिया कलापों को संचालित करती है तथा जीवन को बनाए रखती है | इस विशिष्ट शक्ति की मृदुल शक्ति के कारण स्वास्थ्य बना रहता है | जब यह शक्ति क्षीण हो जाती है तो व्यक्ति बीमार पड़ जाता है | जब होम्योपैथिक दवाएं बीमार व्यक्ति को दी जाती हैं तो वह इसी शक्ति को जागृत करती हैं तथा स्वास्थ्य को पुनः पटरी पर लाती हैं | यह स्पष्ट है कि, हैनीमैन चाहते थे कि वे अपने अनुयायियों को प्रभावित करना चाहते थे कि शरीर में किसी प्रकार के डिसार्डर का कारण हारमनी अथवा संतुलन का क्षय ही है जो संकेतों व लक्षणों में बादल जाता है जिसे बीमारी कहा जाता है| जब हमारे शरीर में यही हारमनी लौट आती है तो हम स्वास्थ्य पुनः प्राप्त कर सकते हैं
मियास्म
मियास्म” शब्द ग्रीक शब्द “मियासमा” से बना है जिसका अर्थ है विकार, पीड़ा या प्रदूषण | हैनीमैन ने ऐसे तीन मियास्म की संज्ञा दी थी , प्सोरा, साइकोसिस तथा सिफ़लिस | प्रत्येक मियास्म विभिन्न व्याधियों का मुख्य कारण होता है जो कि पुरानी प्रवृत्ति की होती हैं | मियास्म या तो जन्म के समय से ही प्रदत्त होते हैं अथवा जीवन काल में ही वातावरण से अंगीकार किए जाते हैं | मियास्म पुरानी व्याधियों को पनपने में उर्वरक मिट्टी की तरह होते हैं |
होम्योपैथिक पैथोजेंटिक प्रयोग (ड्रग प्रूविंग)
होम्योपैथी में ड्रग प्रूविंग विचार बहुत ही उत्कृष्ट है, जहां किसी ड्रग के पदार्थ में उपलब्ध पैथोजेंटिक प्रभावों का स्वस्थ मनुष्यों पर निर्धारण किया जाता है | ड्रग पदार्थ स्वस्थ स्वयंसेवकों को नियंत्रित दशाओं में दिया जाता है और उससे उत्पन्न हुए प्रभावों को बहुत ही सावधानी पूर्वक अभिलिखित किया जाता है जिससे ड्रग पिक्चर को और अधिक विकसित किया जा सके | लक्षणों का यह प्रलेख मैटीरिया मैडिका से मिलाया जाता है | तत्पश्चात बीमार व्यक्ति के लिए उचित दवाओं का निर्धारण उनके लक्षणों के आधार पर व मैटीरिया मैडिका के मिलान पर आधारित होता है |
यद्यपि, ड्रग प्रूविंग के प्रयास हैनीमैन से पहले भी किए गए थे, यथा एंटोन वॉन स्ट्रक (1731-1803) व एल्ब्रेच्ट वॉन हेल्लर (1708-1777) के दौरान | हैनीमैन ने उनके प्रयासों की भूरि भूरि प्रशंसा की थी |
सामूहिक व वैयक्तिक दृष्टिकोण
होम्योपैथिक दृष्टिकोण समग्र व साथ ही साथ वैयक्तिक भी है | समग्र इस संदर्भ में कि दवाएं अनेकों बीमार व्यक्तियों को ध्यान में रख कर तैयार की जाती हैं, वैयक्तिक इस दृष्टि से कि प्रत्येक बीमार व्यक्ति दूसरे से अलग होता है चाहे वह उसी बीमारी से ही क्यों न ग्रसित हो |
दवाओं का चयन प्रत्येक बीमार व्यक्ति के लिए उसकी बीमारी के लक्षणों के आधार पर होता है, न कि उसे हुई बीमारी के नाम पर | इस प्रकार यदि कई व्यक्ति एक ही बीमारी से ग्रसित क्यों न हों उन्हें अलग अलग दवाएं दी जाती हैं | ऐसा इसलिए क्योंकि लक्षणों की अभिव्यक्ति अलग अलग मरीज़ों में अलग अलग होती है | लक्षणों की स्थिति में, उनकी तीव्रता में, विशेषता में, बदलते समीकरणों में व संबन्धित प्रकारों में हर मरीज़ की शारीरिक और मानसिक गुणों के आधार पर व्यापक तौर पर भिन्नता पाई जाती है |
संक्षेप में, होम्योपैथी मरीज़ को बीमारी से ठीक करती है, न कि उन बीमारियों को जो के मरीज़ के अंदर हैं |
होम्योपैथी का पाठ
दवाओं की जानकारी करने का स्रोत
दवाओं की जानकारी का स्रोत होम्योपैथी की बाइबिल कहा जाता है, जो कि होम्योपैथी चिकित्सा के सिद्धांतों व दार्शनिक पृष्ठभूमि का निर्धारण करता है | हैनीमैन द्वारा लिखित, पाँच संस्करण तो उनके जीवन काल में ही प्रकाशित हो गए थे, छठा संस्करण उनके मृत्यु के काफी बाद प्रकाशित हुआ |
मेटेरिया मैडिका
मेटेरिया मैडिका वैयक्तिक दवाओं के लक्षण का एक संकलन है, जिसके आधार पर होम्योपैथिक निदान पत्र जारी किए जाते हैं | हैनीमैन ने अपना औषधि प्रमाणन सबसे पहले फ्रेग्मेंटा दे विरिबस मैडिका मेंटोरम दे पोज़िटिवस में रिकार्ड किया था | सबसे पहला मैटेरिया मैडिका प्यूरा 1811 में प्रकाशित हुआ था | तब से अनेकों लेखकों ने मैटेरिया मैडिकाज़ का प्रकाशन किया है व नई दवाएं इसमें जोड़ी गई हैं |
संदर्भ पुस्तिका
संदर्भ पुस्तिका लक्षणों की एक सूची है साथ ही यह विशिष्ट लक्षणों से सम्बद्ध उपचारों (रुब्रिक्स) की सूची भी है | इस प्रकार की प्रथम होम्योपैथिक संदर्भ पुस्तिका स्वयं हैनीमैन द्वारा लिखी गई थी, परंतु जार्ज जाहर्स द्वारा लिखित संदर्भ पुस्तिका सर्वप्रथम प्रकाशित सूची मानी थी | वर्तमान में बहुत सारी संदर्भ पुस्तिकाएँ (विभिन्न दार्शनिक पृष्ठभूमि सहित) तथा संबन्धित साफ़्टवेयर बाज़ार में मौजूद हैं |
- होम्योपैथी की श्रेष्ठता
- चिकित्सा के सिद्धान्त उपचार के प्राकृतिक नियमों के अनुरूप हैं |
- दवाओं में विशिष्ट स्वाद होता है |
- इलाज अत्यधिक लागत प्रभावी होता है |
- औषधि प्रयोग की पद्धति सामान्य होती है |
- उन्हीं दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिनकी क्रियाएँ मानव स्वयंसेवकों पर परखी जा चुकी होती है |
- दवाओं का प्रयोग उनकी सघन शक्ति के साथ होता है व उनका सेवन बहुत कम मतत्र में किया जाता है अतः वे हानिरहित होती हैं |
- दवाएं लक्षणों के आधार पर दी जाती हैं , उनकी प्रयोगशाला जाँचों तक प्रतीक्षा नहीं की जाती |
विस्तार एवं सीमाएं :
कुछ बीमारियाँ जिनका उपचार होम्योपैथी द्वारा उत्तमता से होता है :
- वायरल मूल के रूप – हेपेटाइटिस, र्हिनिटीज़, इंफ्लुएंजा, क्ंजंक्टीवाइटीस, इरपटिव फीवर्स (चेचक, खसरा, हरपेस ज़ोस्टर) आदि|
- बच्चों की सामान्य समस्याएँ, तीव्र व सक्रमणीय जिनसे जान को खतरा नहीं है |
- गर्भावस्था के दौरान समस्याएँ, प्रसव पीड़ा एवं प्रसवोत्तरकाल |
- चर्म रोग- त्वचा की एलर्जी ( एटोपिक डर्मेटाइटिस, आर्टिकरिया), सोराइसिस, एक्ज़ीमा, वार्ट्स, कार्न्स इत्यादि |
- मनोदैहिक उत्पत्ति के रोग- माइग्रेन, एसिड पेप्टिक रोग, इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम इत्यादि |
- महिला विकार – मासिक धर्म अनियमितता, ड़िस्मेनोरिया, प्रजनन पथ संकर्मण, रजोनिवृत्ति सिंड्रोम, गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय ग्रीवा का क्षरण
- मानसिक विकार जैसे एंकजिटी न्यूरोसिस, डिप्रेशन आदि |
- तथाकथित शल्य बीमारियाँ : रेनल कालकुली, बिनाइन प्रोस्टेट वृद्धि, बवासीर, गुदा में दरार/फिस्टुला इत्यादि |
- होम्योपैथी पद्धति उपचार प्रक्रिया को बढ़ा सकती है और बीमारी से उबरने का समय कम कर सकती है विशेषकर शल्य क्रिया व प्रसव के बाद तथा अस्थिभंग की स्थिति में इनके मिलान को तेज़ कर सकती है |
- होम्योपैथी दवा के आश्रितों की स्थिति से राहत दिलाने में मदद कर सकती है और बीमारी से उबरने के लक्षणों पर नियंत्रण पाने में मदद कर सकती है |
होम्योपैथी में सीमित गुंजाइश है :-
- अपरिवर्तनीय / उन्नत जैविक परिवर्तन उदाहरणार्थ पूर्ण ऑप्टिक शोष, उन्नत फुफ्फुसीय तपेदिक, आदि |
- कृत्रिम जीर्ण बीमारियों में, जिनमें लंबे समय तक,बड़ी मात्रा में एलोपैथिक दवाएं प्रयोग की गई हों |
- ऐसे मामलों में, जहां व्यक्तिगत विशेषताओं की कमी होती है, जो एक होम्योपैथिक दवा का चयन करने के लिए आवश्यक हैं
- जहां रोगी को एक महत्वपूर्ण अंग की कमी होती है, उदाहरणार्थ एक रोगी जिसकी तिल्ली पहले हटा दी गई हो, समय-समय पर बीमारी की तीव्रता से बचाया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है।
- अति उच्च रक्तचाप जिसमें आँखें, गुर्दे व मस्तिष्क नष्ट होने की जटिलताएँ शामिल हों |
- जटिलताओं के साथ गंभीर मधुमेह
- ऐसे मामलों में जहां सर्जरी अपरिहार्य है और जन्मजात दोष के मामले में, उदाहरणार्थ स्ट्रैंथेड हर्निया, कटे तालू, माइट्रल स्टेनोसिस, आदि।