स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद ही विभिन्न राज्यों में क्रमश: होमियोपैथिक अधिनियम पारित किये गये जिसमें उत्तर प्रदेश होमियोपैथिक मैडिसिन अधिनियम 1951, मध्य प्रदेश होमियोपैथिक मेडिसिन अधिनियम 1951, महाराष्ट्र होमियोपैथिक अधिनियम 1951, बिहार होमियोपैथिक अधिनियम 1953, दिल्ली एक्ट, 1956, पश्चिम बंगाल होमियोपैथिक अधिनियम 1963 भी शामिल हैं तथा साथ ही राज्य सरकार होमियोपैथिक विज्ञान की पद्वति के विकास में प्रयत्नशील हुई। इन राज्यों की विकासोमुन्खी प्रेरणा से अन्य राज्यों की सरकारों का भी ध्यानाकर्षण हुआ और वहां भी होमियोपैथिक अधिनियम पारित हुये तथा होमियोपैथिक चिकित्सा परिषदों की स्थापना जिसके चलते चण्डीगढ़ में 1965 में तथा राजस्थान में 1970 में अधिनियम पारित किये गये तथा केंद्र सरकार ने भी होमियोपैथिक सेनट्रल काउंसिल एक्ट 1973 पारित किया जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण भारत में होमियोपैथिक की शिक्षा के स्तर में समानता एवं एकरूपता लाना है। यही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर समस्त राज्यों के पंजीकृत होमियोपैथिक चिकित्सकों के पंजीकृत के लिये भी केन्द्रीय अधिनियम में प्रावधान किया गया है जिससे एक प्रान्त का पंजीकृत चिकित्सक दूसरे प्रान्त में भी उस प्रान्त की सहमति से चिकित्सा कर सकेगा। इस प्रकार से होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों में भी समाजवाद के आधार पर समता का अनुभव हो, ऐसा प्रावधान बनाया गया है। वर्तमान में केन्द्रीय होमियोपैथिक काउंसिल एक्ट 1973 की द्वितीय एवं तृतीय अनसूची में सम्मिलित अर्हताधारी चिकित्सकों का ही पंजीकरण किया जाता है। उत्तर प्रदेश में सन् 1952 में चिकित्सा परिषद का गठन हुआ जिसके अन्तर्गत सन् 1958 तक 13,251 चिकित्सकों का चिकित्सा कार्य की अवधि के आधार पर पंजीकरण किया गया।